देश के कई हिस्सों में बारिश हो रही है और बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं। बारिश के मौसम में जलभराव के कारण कई बीमारियां पनपती हैं, इनमें से ही एक है लेप्टोस्पायरोसिस। यह बीमारी लेप्टोस्पायरा नाम के बैक्टीरिया के कारण फैलती है और अधिकतर संक्रमित जानवरों के जरिए इंसान तक पहुंचती है। एक से दूसरे इंसान में संक्रमण फैलने के मामले कम ही सामने आते हैं।


संक्रमित जानवर जैसे चूहे के मल, मूत्र या दूषित पानी, खाने और मिट्टी के सम्पर्क में आने पर इंसान संक्रमित हो सकता है। इससे सबसे जयादा मामले मानसून में सामने आते हैं। इसकी वजह है जलभराव और नमी।


स्किन और आंखों के जरिए संक्रमित करता है बैक्टीरिया

मुम्बई के मसीना हॉस्पिटल के चेस्ट फिजीशियन डॉ. सुलेमान लधानी कहते हैं, लेप्टोस्पायरोसिस का बैक्टीरिया स्किन, मुंह, आंखें और नाक के जरिए शरीर में पहुंचता है। इसके मामले ऐसी जगहों पर पाए जाते हैं जहां साफ-सफाई की कमी होती है, तेज बारिश व बाढ़ वाले इलाकों में और जहां पानी अधिक समय तक ठहरा रहता है। इसके अलावा खेती-किसानी वाले ऐसे इलाके जहां चूहों की संख्या अधिक होती है, वहां भी मामले बढ़ सकते हैं।


ऐसे लोग जो वॉटर एक्टिविटी जैसे राफ्टिंग, स्विमिंग से जुड़े होते हैं उनमें मानसून के दौरान इसके संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।



7 से 10 दिन के अंदर दिखते हैं ये लक्षण

एक्सपर्ट के मुताबिक, आमतौर पर संक्रमण के 7 से 10 दिन बाद इसके लक्षण दिखते हैं। कुछ मामलों में देरी से भी लक्षण दिख सकते हैं। इसके कई लक्षण फ्लू और मेनिनजाइटिस से मिलते जुलते हैं, इसलिए मानसून में ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर तत्काल डॉक्टरी सलाह लें।


एलाइजा टेस्ट से करते हैं संक्रमण की जांच

लक्षण दिखने पर मरीज का ब्लड टेस्ट किया जाता है। संक्रमण होने पर सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या अधिक और प्लेटलेट्स की संख्या कम हो सकती है। कम समय में बीमारी का पता लगाने के लिए मरीज का एलाइजा टेस्ट किया जाता है। भारत में इसके ज्यादामर मामले ऐसी जगहों पर आते हैं जहां बाढ़ और तूफान आते हैं।


शरीर के कई हिस्सों पर पड़ता है बुरा असर

डॉ. लधानी कहते हैं, अगर संक्रमण गंभीर हो जाता है तो शरीर के कई हिस्सों पर बुरा असर पड़ सकता है। जैसे- किडनी या लिवर का फेल हो जाना, हार्टफेल, दिमाग में सूजन आना और रेस्पिरेट्री फेल्योर। एंटीबायोटिक्स की मदद से इसका इलाज किया जाता है।


आमतौर पर लेप्टोस्पायरा बैक्टीरिया से संक्रमित मरीज एक हफ्ते के अंदर रिकवर हो जाता है। 5 से 10 फीसदी मामले ऐसे भी होते हैं जिन्हें रिकवरी में समय लग सकता है। लम्बे तक संक्रमण बना रहने पर कई अंग बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं, जैसे- किडनी, ब्रेन, हार्ट और रेस्पिरेट्री सिस्टम।