कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर को कमजोर करने के लिए अधिक से अधिक लोगों का वैक्सीनेशन जरूरी है। इसी वजह से कई राज्यों में सरकारें और कंपनियां कर्मचारियों के वैक्सीनेशन को रफ्तार दे रही हैं। अब स्कूल खुल रहे हैं, इस वजह से टीचर्स समेत अन्य स्टाफ को भी वैक्सीनेट करने के निर्देश जारी हुए हैं। कुछ जिलों में स्थानीय प्रशासन ने भी बाजार खोलने के लिए दुकानदारों समेत पूरे स्टाफ को वैक्सीनेट करने की शर्त रखी है।


पर क्या वैक्सीनेशन के लिए किसी के साथ जोर-जबरदस्ती की जा सकती है? क्या सरकारें और कंपनियां अपने स्टाफ के लिए कोविड-19 वैक्सीनेशन को अनिवार्य कर सकती हैं? आइए, जानते हैं कि इस विषय पर कानून क्या कहता है-


क्या सरकार ने वैक्सीनेशन अनिवार्य किया है?


नहीं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वैक्सीनेशन पर जो सवाल-जवाब जारी किए हैं, उसमें साफ कहा है कि वैक्सीनेशन स्वैच्छिक है। हालांकि, अगर आप कोविड-19 से खुद को और अपने परिजनों को प्रोटेक्शन देना चाहते हैं तो वैक्सीनेशन अवश्य करवाएं। इससे कोविड-19 इन्फेक्शन से गंभीर लक्षण होने का खतरा 95% तक कम हो जाता है।

केंद्र के FAQs के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। क्या सरकारें और कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए वैक्सीनेशन को अनिवार्य कर सकती हैं? कुछ कंपनियां तो ऑफिस में एंट्री से पहले यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि कर्मचारियों को वैक्सीन लगी हो, ताकि वे अन्य कर्मचारियों तक इन्फेक्शन को फैलने से रोक सकें।


ऑफिस में वैक्सीनेशन पर सरकार का सर्कुलर क्या कहता है?


अप्रैल 2021 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सरकारी और प्राइवेट ऑफिसेस में कोविड-19 वैक्सीनेशन पर गाइडलाइन जारी की थी। इसमें कंपनियों को 45 वर्ष से अधिक उम्र वाले कर्मचारियों को प्राइवेट कोविड-19 वैक्सीनेशन सेंटरों के साथ कोलैबोरेट कर वैक्सीनेट करने की इजाजत दी थी।

इसके बाद 21 मई 2021 को सरकार ने 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी कर्मचारियों और उनके परिजनों को दफ्तरों में वैक्सीनेशन की इजाजत दी। मंत्रालय ने इसे लिबरलाइज्ड प्राइजिंग एंड एक्सीलरेटेड नेशनल कोविड-19 वैक्सीनेशन स्ट्रैटजी का हिस्सा भी बनाया।

नतीजा यह रहा कि दैनिक भास्कर समेत कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के साथ-साथ उनके परिजनों के लिए भी अपने कैम्पस में वैक्सीनेशन कैम्प शुरू किया। वैक्सीन की शुरुआती शॉर्टेज की समस्या दूर होते ही ज्यादातर कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को पूरी तरह वैक्सीनेट करने की प्रक्रिया तेज कर दी है।

तो क्या अब तक किसी ने वैक्सीनेशन को अनिवार्य किया है?


हां। कुछ राज्यों में और स्थानीय निकायों में इस तरह की कवायद शुरू हुई है। प्राइवेट कंपनियों ने अपने दफ्तरों में वैक्सीनेशन कैम्प आयोजित कर ज्यादातर लोगों को कवर करने की कोशिश की है। ज्यादा जोर स्वैच्छिक वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने पर है।

उज्जैन म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (मध्यप्रदेश), फिरोजाबाद जिला (उत्तरप्रदेश) और पिंपरी-चिंचवड़ म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (महाराष्ट्र) ने कर्मचारियों से कहा है कि वैक्सीन नहीं लगवाएंगे तो उन्हें सैलरी नहीं मिलेगी।

खबरें तो यह भी आई हैं कि असम और छत्तीसगढ़ के कुछ विभागों ने कर्मचारियों को धमकाया है कि अगर वैक्सीन नहीं लगवाई तो सैलरी रोक ली जाएगी। इसका नतीजा यह हुआ कि हिचक होने के बाद भी राज्य सरकारों के इन कर्मचारियों ने वैक्सीन लगवाई।


पर क्या कानून वैक्सीनेशन को अनिवार्य करने की इजाजत देता है?


नहीं। एचआर लॉ एक्सपर्ट विक्रम श्रॉफ और निशिथ देसाई एसोसिएट्स में एसोसिएट सायंतनी साहा का कहना है कि मेघालय हाईकोर्ट ने जून में अपने फैसले में कहा कि संविधान के आर्टिकल 21 में स्वास्थ्य को बुनियादी अधिकार बताया गया है। राइट टू हेल्थकेयर, जिसमें वैक्सीनेशन शामिल है, एक बुनियादी अधिकार है। वैक्सीनेशन को अनिवार्य कर इस बुनियादी अधिकार को छीना नहीं जा सकता।

दरअसल, जून 2021 में मेघालय सरकार ने आदेश जारी किया था कि दुकानदारों, विक्रेताओं, लोकल टैक्सी ड्राइवर्स और अन्य को कामकाज शुरू करने से पहले वैक्सीन लगवानी होगी। इस आदेश के खिलाफ मेघालय हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी लगी थी।

इस पर हाईकोर्ट ने कहा- “किसी भी व्यक्ति को उसके आजीविका के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। अगर सरकार को अपने आदेश में ऐसा करना है तो उसका आधार मजबूत चाहिए। जब वैक्सीनेशन को अनिवार्य नहीं किया गया है तो किसी को उसकी रोजी-रोटी कमाने से वंचित नहीं किया जा सकता।”

जून में ही इंडियन एयरफोर्स के एक कर्मचारी को कोविड-19 वैक्सीन नहीं लगवाने पर शो-कॉज नोटिस मिला था। इस नोटिस के खिलाफ कर्मचारी गुजरात हाईकोर्ट गया था। इस पर फैसला नहीं आया है। पर हाईकोर्ट ने 22 जून को एयरफोर्स से कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में भी साफ तौर पर व्यक्ति को अपने मेडिकेशन चुनने का अधिकार दिया गया है।

क्या दुनियाभर में वैक्सीनेशन को अनिवार्य किया गया है?


नहीं। अब तक दुनिया के किसी भी देश ने अपने नागरिकों के लिए कोविड-19 वैक्सीनेशन को अनिवार्य नहीं किया है। पर अब ब्रिटेन, इटली जैसे कुछ देशों ने हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए वैक्सीनेशन अनिवार्य किया है तो कुछ देशों ने कंपनियों को इसकी इजाजत दी है।

फिजी में लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे थे। मास्क भी नहीं पहन रहे थे। इस वजह से पिछले हफ्ते वहां की सरकार ने सभी 9 लाख सरकारी कर्मचारियों के लिए वैक्सीन अनिवार्य कर दी। 15 अगस्त तक कर्मचारियों को कम से कम पहला डोज और 1 नवंबर तक दूसरा डोज लगवाना हगा। वर्ना उन्हें नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा।

यूएस इक्वल इम्प्लॉयमेंट अपॉर्च्युनिटी कमीशन ने कंपनियों को कर्मचारियों के लिए फ्लू और अन्य वैक्सीन को अनिवार्य करने की इजाजत दे रखी है। संकेत साफ है कि जरूरत पड़ने पर कंपनियां कोविड-19 वैक्सीन भी लगवा सकती है। पर धार्मिक आधार पर या मेडिकल आधार पर वैक्सीन नहीं लगवाने की छूट भी है। इस समय वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल नहीं मिला है, इसलिए अमेरिका के कुछ राज्यों में इसे अनिवार्य नहीं किया गया है। अमेरिका में जल्द ही आर्मी के लिए वैक्सीन अनिवार्य होने वाली है।


पर क्या इससे पहले किसी वैक्सीन को अनिवार्य किया गया है?


हां। इसकी शुरुआत ब्रिटेन से हुई थी। 1853 में ब्रिटिश सरकार ने स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन को अनिवार्य किया था। वैक्सीन नहीं लगाने पर 1 पाउंड का जुर्माना भी था, जो आज के 130 पाउंड (करीब 14 हजार रुपए) के बराबर है।

मैकगिल यूनिवर्सिटी ने 2018 में एक स्टडी में पाया कि 193 देशों में से 105 ने कम से कम एक वैक्सीन को अनिवार्य कर रखा है। 62 देशों में तो वैक्सीन नहीं लगाने पर सजा का प्रावधान भी है। ऑस्ट्रेलिया में वैक्सीन के बिना बच्चों को प्री-स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता।

इंटरनेशनल लेवल पर सर्वे करने वाली फर्म Ipsos का कहना है कि मैक्सिको में 77%, ब्राजील में 68%, फ्रांस में 37% और जर्मनी में 39% लोग कोविड-19 वैक्सीनेशन को अनिवार्य करने के पक्ष में हैं।